चाह नहीं अमर पद का
मेरे हँसने से मिट जाये दुख दर्द किसी के तनका ।
सौ सौं साल हंसूँ जग में लोभादि त्याग मन का ॥
मेरे भूखे रहने से भर जाये पेट किसी जन का ।
भूखा की रहूँ जगत में, दावाग्नमि मिटे भव का ॥
मेरे बाह लगाने से हो जाये बेड़ा पार किसी का,
बन जाए सौ सौ बाह बदन में कष्ट मिटे नर किश्ती का।
मेरे मनन मंत्र जाप से हो जाए मुक्ति किसी का,
बह बरस जपूँ मन में ले भाव दया समता का ॥
मेरे विरही रहने से यदि पल जाये प्यार किसी का |
सौ सौ बरस विरह सागर में नाम रदूँ उस प्रेमी का ॥
मेरे मरने से सध जाए काम किसी मानुष का ।
मरता जीता रहूँ जगत में चाह नहीं अमरपद का ॥
डा० सुरेश कुमार अग्रवाल